आज लम्बे समय बाद ब्लॉग पर आना हुआ है और वो भी गणतंत्र की धूमधाम के बीच .भारत के कुछ समारोह हैं जो सभी सीमायों से परे जाकर हम सब भारतवासी मनाते हैं और उनमें से यह एक है.मैं कल से टीवी पर देख रहा हूँ इस पर्व को किस तरह कवर किया जा रहा है और सबसे सुखद तो यह है कि इस बार हमने अपने अंधकार में झाँकने की कोशिश नहीं की और न ही हमने गणतंत्र के बहाने अपने शाश्वत घावों को कुरेदा है,जो हम अक्सर देखते चले आ रहे हैं.सडन अभी भी मौजूद है और शायद कहीं ज्यादा भयानक तरीके से मौजूद है पर हमारे पास गर्वित होने के भी कई कारण हैं जिन पर गर्व किया जा सकता है और यही कारण हमारे भविष्य के लिए प्रेरणास्त्रोत का भी काम करते हैं.
मेरा मानना है की हमे अपने इन्हीं प्रेरणास्त्रोतों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए ताकि हम एक मुस्कुराता हुआ-खिलखिलाता हुआ भारत न केवल बनता हुआ देख सके वरन उसके बनने में सहभागी भी हो सके. हम यदि यह मानते हैं कि हम कमज़ोर है तो हमे यह भी मान लेना चाहिए कि हम अपनी तमाम कमजोरियों के साथ शक्तिशाली भी है और यह शक्ति हमे देते हैं हमरे आस-पास के वो लोग जो हमारे नायक हैं और वो भी बिना किसी घोषणा के,बिना किसी आन्दोलन के,बिना किसी साधन के.......यह लोग न तो अन्ना हजारे बन सकते हैं,न ही यह लोग बाबा रामदेव या श्री श्री रविशंकर बन सकते हैं,न ही यह लोग कभी कोई आन्दोलन खड़ा कर सकते हैं पर यह हैं वो लोग जो स्वयं में एक आन्दोलन हैं,स्वयं में परिवर्तन के वाहक हैं.मैं किसी के का नाम नहीं ले रहा हूँ क्योकि उसका कोई मतलब नहीं है पर यदि आप अपने आस-पास देखेगें तो ऐसे नायक ज़रूर पायेगे.
आज हमे यह मान लेने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि बाबा रामदेव भटक चुके हैं और अन्ना हजारे का आन्दोलन अपनी सार्थकता पर एक प्रश्नचिंह लगवा चूका है.यह भटकाव भी गणतंत्र को शक्ति ही देगा ऐसा मेरा मानना है.
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