सुनो शब्दों - अरे ओ अक्षरों....

सोमवार, 29 अक्तूबर 2018


व्यंग्य-
                 कहाँ हो तुम सब.....!

    देखो ज़माना बदल चुका है और गंगा में भी पानी बहुत बह चुका  है. उस अपने वाले दौर में तो ठीक था कि तुम सब सभी बातें सहन कर लिया करती थीं. पर अब ऐसा न करने के युग की शुरुआत हो चुकी है और मैं चाहता हूँ कि तुम सब भी अभी जहाँ भी हो इस नए युग में ढल जाओ और आओ #मीटू में शामिल हो जाओ.
    देखो मैं अभागा अभी तक किसी ने भी इस नए प्रचलन का मुझ पर उपयोग नहीं किया है. सभी मुझे चिड़ा रहे हैं कि क्या खाक साथ में पढ़े हो – क्या खाक में साथ में रहे हो. या तो झूठ बोल रहे हो या फिर शराफत का कम्बल ओढ़कर सोते रहे और सिर्फ़ हमारे सामने ही इतराते रहे कि मेरे संबंध तो इस-उससे हैं. सच में मैं बहुत ही परेशां हूँ. अब तुम सब बतलाओ कि मैं ज़माने में यूँ रुसवा हो रहा हूँ तो बुरा नहीं लग रहा है क्या. ध्यान रहे, रुसवाई तो तुम्हारी भी हो रही है.
    जिसे भी आस-पास देखो डरा-डरा फिर रहा है. सोशल-मीडिया पर सहमा-सहमा नज़र आ रहा है. भद्दे जोक्स से एलर्जी-सी हो गई है. अब तो राधे-राधे होने लगी है. जो देर रात तक जाग-जागकर मैसेज भेजा करते थे अब वो भी दस बजे रात को गुड-नाइट कहकर ऑफ हो जाते हैं. मुझे भी ऐसा की व्यवहार करना चाहिए पर हो यह रहा है कि मेरे दिन-रात सभी अच्छे से कट रहे हैं. अभी भी देर रात जग रहा हूँ पर सिर्फ राधे-राधे ही हो पा रही है जो कि अच्छा नहीं है.
    मैं मानता हूँ कि हम सभी पचास पार कर आगे साठ की तरफ़ बढ़ चुके हैं पर मेरा कहा मानों कि अभी साठ बहुत दूर है और अभी भी हम सब बहुत कुछ कर लेने का माद्दा रखते हैं. अभी स्मृति-लोप भी नहीं हुआ है. सच मानो यदि याद करोगी तो लगेगा कि कल ही की तो बात है.
    मैं मानता हूँ कि तुम सभी की जवानी बिदाई की बेला में है. शाम का धुंधलका छा रहा है. रात्री अपनी निस्तब्धता के आगोश में तुम सभी को लेने वाली है. यह भी मानता हूँ कि तुम सभी मध्यम वर्ग से हो और जिंदगी की जद्दोज़हद ने तुम्हारे सभी कसबल ढीले कर दिया हैं. जीवन में नीरसता को ही तुमने नियति मानकर जीना शुरू कर दिया है. तुम्हारे बच्चे भी अपनी-अपनी जवानी की दहलीज़ लांघकर इस नई दुनिया के क्लाउड कंप्यूटिंग के आकाश में आभासी बुद्धिमत्ता जिसे वो एआई कह रह हैं में रम गए हैं. अब तुम्ही सोचो कि आज तुम्हारे बच्चे ही तुम्हे पुराने ज़माने का कहकर छिटक रहे हैं और तुम सभी स्मार्ट फोन रखकर भी स्मार्ट नहीं बन पा रही  हो और मान ही बैठी हो कि अरे हम पिछड़ गए हैं – देखो यह दुनिया कितनी बदल गई है.
    क्या तुम सभी को यह नहीं लगता है कि तुम सभी आने वाले समय में कहीं अन्धेर्रों में खो जाओगी. कहीं गुम हो जायोगी.
    यही स्थिति अभी मेरे साथ भी है. मैं भी तुम सभी से अलग नहीं हूँ. पर जबसे यह #मीटू चला है कुछ आस बंधी है. यही एक अवसर है कि हम इस नीरसता के घटाटोप से बाहर आ सकते हैं. माना कि हम कोई सेलिब्रिटीज नहीं हैं. न ही फिल्मों से जुड़े हुए हैं और न ही राजीनीतिक हैं. लेकिन क्या तुम्हे लगता नहीं कि इस तरह के अभियान अभिज्यात वर्ग और अधिक अभिज्यात बना देते हैं. मोरल वेल्यु को इन्हांस कर देते हैं. आख़िर हम मध्यम वर्ग के लोग कब तक यूँ ही पीसते रहेंगे.
    इसलिए मैं कहता हूँ कि यह तुम्हारे लिए और मेरे लिए अंतिम अवसर है कि तुम सभी चैत जाओ – जाग जाओ और इस #मीटू के ज्वार पर सवार हो जाओ. मैं वहीँ जिसने कभी तो तुम्हे देखा होगा जिसे तुम सब घूरना कहती थीं. ज़रा याद करो वो दिन जब कभी तुमने मुझे देखकर अपनी किसी सहेली से कहा होगा कि इसने अपनी शकल भी देखी है या कभी तुम्हारे मन में मुझे अपने पिता से – भाइयों से पीटवाने का ख्याल आया होगा या स्वयं तुमने चाहा होगा कि इसे एक झापड़ मारकर सबक सिखाऊँ या चप्पलों से इसकी पिटाई कर दूँ. पर तुम्हे हमेशा गांधीजी ने रोक लिया होगा और हिंसा के मनोभावों को तुमने दबा दिया होगा. कहीं संस्कारो ने रोका होगा तो कहीं संस्कृति ने तुम्हे टोका होगा. तुम्हारी लड़की होने की कतिपय भावना ने तुम्हारे पैरों में बेड़ियाँ डाल दी होगीं.
    पर आज मैं चाहता हूँ कि तुम सभी उठों और #मीटू का लठ लेकर खडी हो जाओ. यह जानते हुए भी होना-जाना कुछ नहीं है पर नाम तो होगा. हाँ सच कह रहा हूँ कि तुम्हारा नाम होगा और मेरे नाम के आगे भी बद जुड जायेगा. यही हमारे-तुम्हारे प्रसिद्ध होने का प्रथम और अंतिम अवसर है. अपने-अपने नाती-पोतों को सुनाने के लिए कुछ तो होगा.
    यह कड़वा सच भी जान लो कि दुनिया के कोई भी अभियान लम्बे समय तक नहीं चलते हैं. सारे अच्छे-बुरे अभियान एक-न-एक दिन अपनी मौत स्वयं मर जाते हैं. इसलिए कहता हूँ कि इससे पहले कि यह अभियान भी दम तोड़ दे, इतिहास के गर्त में कहीं खो जाये, इसके किनारे सूख जाएँ और इससे पहले कि तुम्हारा शरीर झुर्रियों की चादर ओढ़ ले, तुम सभी को अल्जाइमर हो जाये उससे पहले इस अवसर का लाभ उठा लो. अपने जीवन में रोमांच के रंग भार लो और कुछ मुझ पर उड़ेल दो.
    मैं फिर आव्हान कर रहा हूँ कि कहाँ हो तुम सब......!


    तुम सभी के #मीटू की प्रतीक्षा में, तुम्हारा वही –“वो वाला”